19 जुलाई 2008

विश्वास

कुछ और नेवले
साँपों की तलाश में आ गए हैं
सभी घूम रहें हैं/ इस घात से
की आज फिर,
कुछ सांप-
धूप को समेटने आयेंगे। और
आज फिर,
शायद कुछ सांप-
हर पल यहाँ ज़ोर आजमाएंगे.
क्यों की वह (नेवले..)
धूप में आकर बैठे हैं,
अपने अँधेरे बिलों से-
ऊब कर।
भूँख के जाल में कैद कर लिया है।
उन्हें- किसी ने।
और अब वह शोर मचा रहे हैं
धूप में ही-
आपस में लड़ रहे हैं-
एक दूसरे को नोंच रहे हैं
क्यों की – कोई भी सांप
अब तक
उधर नहीं आया है।
सांप आयेंगे / ज़रूर आयेंगे-
ऐसा विश्वास है, उस….
नेवले को। जो कोने में
खामोश सा।
माँ की गोद में सिमटा है।
मुस्कुरा रहा है। शायद उनकी बेबसी पर
जो अब तक लड़ झगड़ कर
शांत हो चुके हैं। और-
अब वह धूप में आकर
घात में/ विचारमग्न हो
स्थिर है।
क्यों की उसे विश्वास है
सांप आयेंगे। सांप
ज़रूर आयेंगे॥

(2nd October 1981)

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