23 जुलाई 2008

आकाँक्षा

बह जाने दो उगता सूरज
गहरे पानी में
आज ढूँढने हैं मोती
उथले पानी में

हाथ छोड़ के साथ चले तुम
पथरीली राहों पर
अंगुली थामे साथ चलो तुम
नर्म रेत के आँचल पर

गालों पे जब-जब भंवर पड़े
फूलों का दामन छोड़ दिया
मस्तक की रेखा को पढ़कर
काँटों से रिश्ता जोड़ लिया

क्षण में उजले हिम शिखर का
उर्वर धरती से नाता
सागर की उन्मत्त लहरों का
इन्द्रधनुषी छाता

बह जाने दो मस्त हवा को
ऋतू बागी मस्तानी में
आज देखना है हमको
किस्मत के खेल रवानी में

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