19 जुलाई 2008

धूम्र

शून्य में विलीन
अस्तित्वहीन/ उन्मादित
धूम्र।
फिर भी,
उठते धूम्र की चिरपरिचित सुगंध!
आलिंगन में मचलती
आकाँक्षाओं की राख!!
कितनी तपिश?
कितनी प्यास??
आनंद……उल्लास!
फिर भी-
कितना गहरा यह त्याग!
कितना क्लिष्ट इसका आभास।

असामान्य-
सर्प रेखा सा। विवश
उर्ध्वगामी धूम्र।
अनबूझा / अपरिचित
फिर भी सुंदर।
कुंठा पीड़ित-
अनिश्चित / निरुद्देश्य
आकाशगामी!!
धूम्र-यान!!
किंतु कहाँ है। किसको है?
इसका विश्वास।

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