26 दिसंबर 2008

अजनबी

एक अजनबी

जाना पहचाना-सा

अपना-सा लगता है

नहीं लगता है - बेगाना-सा

नहीं करता बात - दीवानों-सी

आसमान से चाँद-तारे तोड़ने की

या उफनती लहरों को

ओढ़नी बनाने की

पाँव रहते हैं ज़मीन पर

वह बात करता है

भावनाओं की/ संवेदनाओं की

चाय, काफ़ी, महंगाई की

क्रिकेट, पे-कमीशन और

मुंबई के आतताई की

नेता-अभिनेता, माफिया

सभी उसको प्रभावित करते हैं

सर्द हवा के थपेड़े

उसे कुछ और समेट देते हैं

वह अजनबी

बहुत आम है

ख़ास कभी-कभी ही होता ही

तब-

जब भरनी होती है बच्चों की फीस

या पत्नी को लेनी होती है कोई ट्रीट

महीने के आखिरी दिन

और आम-चुनाव का दिन

तभी-

वह अजनबी-

अपना-सा लगता है

जाना पहचाना-सा लगता है

मासूम/ प्यारा-सा लगता है

वह अजनबी !

6 दिसंबर 2008

पत्थर

हमने जो पत्थर तराशे
नींव में सब सो गए
मील के पत्थर शहर की
भीड़ में सब खो गए
अब किसे आवाज़ दें
जब हर तरफ दीवार है
शब्द हैं खामोश
इशारे भी यहाँ लाचार हैं
धूप रिश्तों की बची जो
आओ उसमें बैठ लें
उम्र की छोड़ो यहाँ पर
ज़िन्दगी व्यापार है