13 जुलाई 2008

अम्बर के पीछे

नीले अम्बर के पीछे, दूर....
शून्य में / कहीं कुछ है।
बिखरा-बिखरा सा;
कैसा?
निश्चित नहीं।
सिर्फ़ अनुमान ही है। आभास ही है।
लेकिन फ़िर भी-
कुछ है.......!!
शायद--
मानव का प्रगतिवाद ??
नहीं -----नहीं
शायद यथार्थवाद।
उल्टा/तिरछा। बिगडा /सीधा-
अंतहीन---
यथार्थवाद ??
शायद--
क्रंदन करता मानव जीवन ?
जंजीरों से जकड़ी जीवित-
साँसे । गर्म -
धुंध में जलती / चीखती
आवाजें । किंतु
श्रवण-हीन चीखों की कडियाँ।
भू तक, नहीं पहुँच / सकती है -
फ़िर भी --
सिसक रही सिसकी की
ध्वनियाँ !!
शायद---
अम्बर की आड़ से झांकता--
विषाद का सूरज ।
प्रताडित - पीड़ित
जन-जीवन,
कड़वा ज़हर / ज़हरीला धुआं -
घुटता जीवन !!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. विकास से जुड़े विरोधाभासों पर आपकी अनुभूति और अभिव्यक्ति अच्छी लगी। विकास की प्रक्रिया को सुरक्षित दिशा दिए जाने की जरूरत है। यदा कदा मतान्तरः एक राजनीतिक ब्लॉग पर भी आते रहें।

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