8 जुलाई 2008

एक क्षण

केवल एक क्षण -
और फिर आभास हुआ
जीवन में व्याप्त शून्यता का। जैसे-
अंधकार का पर्दा
आंखों पर एकाएक आ गया हो
मानो -

सृष्टि का अंतिम ज्वालामुखी
सजीव हो कर,
रगों में करवटें लेने लगा हो
मस्तक पर धमनियों की

धमक । गर्माहट
स्वेद कणों में उबाल
लाने का षडयंत्र करने लगी हों
बस। केवल एक क्षण
और सारे स्वप्न -
ताश के पत्तों की तरह / जैसे
बिखरने लगे हों !

तभी --
शंखनाद / संगीत लहरी
और प्रकाश की एक किरण
शून्य से तैर कर / मानो-
प्रवेश करने लगी मेरे जीवन में। और फिर -
केवल एक क्षण
मानो सजीव हो उठा हो मेरा जीवन।
और
बीत चला हो वह
अंधकारमय -
केवल एक क्षण !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें