20 जून 2016

क्या होगा.....

थी बहारें बाग़ में गुलशन बड़ा मग़रूर था
शाख से टूटा हूँ मुझको सींचने से क्या होगा

जिनकी आँखों को मयस्सर नींद ना हो
ख्वाब उनके तोड़ने से क्या होगा

वो जो बैठे हैं समंदर से सहम कर
पतवार उनको सौंपने से क्या होगा

काँच का पुतला नहीं था तेरी महफ़िल में रक़ीब
इस क़दर टूटा हूँ मै, मुझे जोड़ने से क्या होगा।

छोड़ तनहा हाथ मेरा चल दिए तुम
अब भला मुझे ढूंढने से क्या होगा

हो चले रुख़सत तुम्हारे इस जहाँ से
अब निगाहें फेरने से क्या होगा