16 जुलाई 2008

एक विस्फोट और...

एक विस्फोट,
जिसमें कुछ और कराहटें...
----खामोश हो गयीं ।
सब कुछ शायद, अचानक ही -
अनजाने में-
यह बात हो गयी।
कुछ पल बाद -
कुछ पल बाद कुछ होगा;
क्योंकि कुछ होना है।
कुछ वैसा ही/ जैसा-
कुछ पल पहले हुआ। क्योंकि.....
पहले वोह कुछ करता है
फिर सोचता है। समझता है।
ऐसा वोह हमेशा करता है-
ऐसा वह हमेशा करता है-
वह जानता है....
भविष्य अनिश्चित है
वह स्वयं अनिश्चित है।
इसीलिये उसने जो कुछ किया है/ करा है/ करेगा....
भविष्य निश्चित करने के लिए।
स्वयं को निश्चित करने के लिए।

लेकिन -
यही तो एक धोखा है,
मृग-मारीचिका है। वह
कुछ और अनिश्चित हो गया है। हुआ है। होगा.....
क्योंकि यह विस्फोट ।
कर्ण-भेदी विस्फोट। जिसमें -
जाने कितनी कराहटें दब गयीं
साँसे दम तोड़ गयीं।
उसकी/ उसके
भविष्य का रक्षक नहीं।
संहारक हैं।
कुछ और अनिश्चितता !
कुछ और समस्या !
कुछ और उलझन !!
कुछ और तड़पन !!
यह विस्फोट समाधान नहीं...
यह विस्फोट विश्राम नहीं....
यह विस्फोट उन्मूलन नहीं....
यह समस्या है-
यह सूचक है/ तूफ़ान का
यह आरम्भ है/ पतन का
लेकिन -
कैसा तूफ़ान ?
कैसा पतन ??
यही तो तूफ़ान है।
यही तो पतन है।
तब-
तूफ़ान से भी ज़्यादा और कोई तूफ़ान है ?
पतन से भी ज़्यादा और कोई पतन है ??
है..........है............है............!!!
अब उसी का आरम्भ होगा।
अब वही बस शेष है।
---अपना हाथ खोलो .....
यह लो-
और उछाल दो...
उधर -
जहाँ कुछ और कराहटें हैं....
सांसें हैं।
[ दम तोड़ती ]
उन्हें खामोश कर दो।
उन्हें सहारा दे दो॥
दे दो --
और एक विस्फोट !

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