16 नवंबर 2008

….ज़रूरी तो नहीं

हर सीप में मिल जाए मोती
यह ज़रूरी तो नहीं
हर शख्स में मिल जाए इन्सां
यह ज़रूरी तो नहीं
धूप के साए में तिनकों से बना हैं आशियाँ
चाँद की हो चाँदनी
यह ज़रूरी तो नहीं

बेसबब हंसना पड़ेगा
यह ज़रूरी तो नहीं
आँख भर आए तो रोएँ
यह ज़रूरी तो नहीं
हिचकियाँ आएँ अगर तो आपका ही नाम लें
मय में इतना भी नशा हो
यह ज़रूरी तो नहीं

जंग-ए-मैदां में अदावत
यह ज़रूरी तो नहीं
साथ हो शमशीर, चेतक
यह ज़रूरी तो नहीं
हौसला रखो तो मंजिल ख़ुद-बा-ख़ुद मिल जायेगी
आग का दरिया हो मुश्किल
यह ज़रूरी तो नहीं

9 नवंबर 2008

धुंए के अस्तित्व

क्यों आपकी आखों से?
धुंए के अस्तित्व झलकते हैं?
शनैः-शनैः-----
गाढ़ी होती धुंए की परतें!
दम घोंटती धुंए की चादर!!
क्यों आपकी आखों से?
धुंए के अस्तित्व झलकते हैं?

सड़कों पर दौड़ती सीटियाँ;
मकानों से झांकती वीरानियाँ;
.......किसी से अनजाने में ही
छलक पड़ती हैं-
शमशानों की खामोशियाँ!
किसके लिए-
यह कष्ट कर रही हैं?
किसके लिए -
यह त्याग कर रही हैं?
[शायद -
सम्पूर्ण मानव जाति के
हित में / व्रत में।
क्योंकि इंसान ही को प्रेम है-
वीरानगी से]
क्या यह ग्लोब के टुकडों की
भूखी हैं?
मेरा लहू बिकाऊ है।
आप क्यों नहीं खरीद लेते?
इन्हें मेरा लहू पिलाईये / अर्पित कीजिये
इसी के तो इन्हें प्यास है - आस है;
मेरा मांस -
उनके आगे फेंकिये / भक्षण कराइए -
इसी के वह भूखे हैं।
लेकिन-
क्यों आपकी आखों से?
धुंए के अस्तित्व झलकते हैं?

सूखे होठों पर खेलती हँसी;
ज़िन्दगी मौत से जूझती-सी कहीं;
साँस लेते ही अचानक-
.......कसमसाने लगी
मौत फिर से कहीं।
किसने कहा है-
खून सारा ही पी लो?
किसने कहा है-
मांस सारा ही खा लो?
न कोई अब भूख से त्रस्त है।
न रहेगा।
न अब कोई कमज़ोर है।
न रहेगा। क्योंकि -
दूध की सरिता प्रवाहशील है?
दुग्ध-समाधि क्यों नहीं ले लेते??
[बाढ़ की-
अतुलनीय जलराशि में हुई
जल-समाधि की भाँति। ]
क्यों नहीं-
बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं?
देखते नहीं-
कितनी सुविधा है!
राम-राज्य है!!
स्वराज्य है!!!
अहिंसा-वाद है!!!!
और तो और
समाजवाद का (मामूली सा) बोझ/ शायद है-
[कल ही-
उसमें दबकर/ उस
दुर्बल/निर्बल प्रजा की
मौत हो गयी है
जिसकी झुकी पीठ पर। इस-
समाजवाद का ढोंग
लदा था। ]
बोझ है तो क्या?
है तो समाजवाद ही।
लेकिन-क्यों?
आपकी आखों से-
धुंए के अस्तित्व झलकते हैं?

6 नवंबर 2008

ग़ज़ल


तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो
तुम्हे खेल कोई चाहिए, मेरे दिल से आज खेलो

हर हाल में रहा हूँ, ज़िन्दा रहूँगा यूँ ही
यहाँ राख ही रही है, यहाँ राख ही रहेगी
नहीं खौफ़ है क़हर का, शोले मिलें या शबनम
ग़र तुम्हे शराब चाहिए, अश्कों को मेरे पी लो
तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो....

मुझे ग़म नहीं की मैंने, काँटों का साथ माँगा
जब नींद में बशर थे, रातों को मै क्यों जागा
मेरे लहू से रोशन, ये हिज़ाब है सहर का
इस रंग को चुरा कर, होठों को तुम सज़ा लो
तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो....

4 नवंबर 2008

पायल की झंकार

हाँ! मैंने सुनी है

मधुर

पायल की झंकार / तब
जब तुम मेरे सीने पर
अपने होठों से चुम्बन देकर
झंकृत कर देती थीं -
मेरा रोम-रोम
मेरा अंग-अंग
उसी क्षण बज उठती थी
तुम्हारे साँसों के स्वर में
मधुर
पायल की झंकार
हाँ! मैंने सुनी है।


जब मुझे जीवन घड़ियां
उदासी देने लगीं -
जब प्रातः स्वर्ण रश्मियाँ
बासी लगने लगीं
तब..........हाँ! तब ही -
तुमने मेरा नाम लेकर
मुझे पुकारा
संगीत के सुरों पर थपकी देकर
..............हाँ! तब ही
तुमने हाथों में गुलाल लेकर
आकाश में बिखेरा
अपने सिन्दूरी कपोलों की लाली देकर
उसी क्षण गूँज उठी थी
तुम्हारी चितवन के स्वर में
मधुर
पायल की झंकार
हाँ! मैंने सुनी है

1 नवंबर 2008

कुछ दूर तो चल कर देखें

मुमकिन है सफर हो आसाँ, कुछ दूर तो चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर

दो चार कदम हर रास्ता, पहले की तरह लगता है
शायद कुछ रास्ता बदले, कुछ दूर तो चल कर देखें
झूठा ही सही यह रिश्ता , मिलते ही रहें हम यूँ ही
हालात नहीं बदलेंगे, रिश्ते ही बदल कर देखें

सूरज की तपिश भी देखी, शोलों की कशिश भी देखी
अबके जो घटा ये छाये, बरसात में चल कर देखें
अब वक्त बचा है कितना, जो और लड़े दुनिया से
दुनिया की नसीहत पर भी, थोड़ा सा अमल कर देखें

मुमकिन है सफर हो आसाँ, कुछ दूर तो चल कर देखें

कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर देखें