29 सितंबर 2008

कदम लड़खडाने लगे……

क्या इशारा किया आज नज़रों ने तेरी
कदम लड़खडाने लगे
होश आने लगा था मुझे आज लेकिन
कदम लड़खडाने लगे

गुनगुनाते हुए अंजुमन हमने देखे
बहारों में हँसते चमन हमने देखे

यह गुमाँ हमको था फिर खुशी मिल सकेगी
अजब था नशा आज तेरी अदा में
कदम डगमगाने लागे

बहुत चोट खाए बशर हमने देखे
चांदनी में सुलगते मकाँ हमने देखे

यह यकीं था हमें मौत अब तो मिलेगी
इसी अज्म से हम चले जा रहे थे
कदम ज़ख्म खाने लगे

27 सितंबर 2008

याद आता है मुझको....

एक समय जब याद आता है मुझको
मैं तेरी घनी, घटा सी जुल्फों से खेलता था
तू लजाती, शर्माती और झिझकती थी
तेरे होठों का गुलाब, तबस्सुम का दरिया था
आँखें - शांत झील की गहराई थीं
प्यार तेरा मादकता का छलकता जाम था
और अब वो यादें एक नासूर बन गयी हैं
ज़िन्दगी ग़मों का एक दरिया है
जिसमें डूबता - उतराता हूँ मैं
सोच कर तेरी बेवफाई,
दिन-रात दिल जलाता हूँ मैं

26 सितंबर 2008

मैं अश्क बहाती रहती हूँ.....

मैं अश्क बहाती रहती हूँ, फिर भी तकदीर नहीं बदलती

अश्कों की कसमें खाती हूँ, फिर भी नींद नहीं आती

मैं आँसू पीती रहती हूँ, फिर भी यह प्यास नहीं बुझती

नज़रों की प्यास बुझाती हूँ, पर दिल की प्यास नहीं बुझती

तुम जब रहते पास मेरे, तब भी नींद नहीं आती

तुम ना रहते पास मेरे, तब भी नींद नहीं आती

रहती हूँ मैं साथ तेरे, पर दिल की प्यास नहीं बुझती

आखों में छाये रहते हो तुम, आखों की प्यास नहीं बुझती

24 सितंबर 2008

मुक्तांगन में....

"अधरों तक आने को व्याकुल मन में घिरते मुक्त विचार
आलिंगन में कस अधरों का, लेते हैं चुम्बन सुकुमार"

"तुम्हे क्या प्रणति दूँ मैं चिंतन करती ह्रदय-वीणा
प्रिये कहूं, प्रियतमा कहूं, या कह दूँ कवि की पीड़ा"

"हर बंधन का लंघन कर के स्मरण तुम्हारा आता है
चंद्र रश्मि भी मद्धिम लगती, मुखडा तेरा भाता है"

"रक्त की हर बूँद थिरक उठी आपकी बातों से,
महक उठा जीवन उपवन आपकी साँसों से"

"छद्म रूप तेरा छलता मुझको सपनों में आ-आ कर,
नयना आंसू वर्षा करते, सिसकी के सुर-लय पर"

कहना है.....

"ज़िन्दगी का जाम खाली, अश्कों से भर गया
इश्क की ठोकर लगी, पैमाना छलक गया"

"ऐ हुस्न तुझे कसम है, न क़त्ल कर अभी
मुहब्बत की रंगीं है रात, शब-ए-हिज्र तो बरसने दे"

"ऐ हुस्न तू कसम से इंसान नहीं है;
दहकता हुआ शोला है, शबनम नहीं है"

"हाय रे कातिल तेरे तीरे नज़र के घायल हैं हम
तड़प रहे हैं मगर, निकलता नहीं है दम"

"तुमसे क्या करे हम इनकार-ए-मुहब्बत
जब कर ही ना सके थे इकरार-ए-मुहब्बत"