3 अगस्त 2008

इंतज़ार में……..

ख़ूब, बहुत ख़ूब, तबस्सुम हैं तुम्हारे
उठते है, गिरते हैं गालों पे भँवर से

सुबह की पहली ओस हो, तुम रात की हो चांदनी
तुम दूर बहुत दूर मगर दिल के पास हो

ज़िक्र-ए-बेवफाई में मैं खामोश था मगर
होठों ने ख़ुद-बी-ख़ुद तेरा नाम ले लिया

तन्हा हो, परेशां हो, बहुत उदास हो तुम
है शुक्र यह खुदा का, कि फ़क़त मेरा ख्याल है

बैठा हूँ घर में काँच के फेंको ज़रा पत्थर
कुछ और हवादिस हों मेरे अज़्म के लिए

मुहब्बत के किस मुक़ाम में हम आ खड़े हुए
इबादत-औ-अदावत में कोई फ़र्क़ ही नहीं

ज़माने में हुस्न-ओ-इश्क की रवायत बदल गयी
हजूम मजनुओं का है, लैला कोई नहीं

ख्वाबों में जो आना हो तो परदे से ही आना
नीयत मेरी बाखुदा कुछ ठीक नहीं है

मुँह फेर के तुम चल दिए, मेरे दिन ख़राब हैं
वर्ना तो हँसीनों में मेरे चर्चे बहुत हुए

ख़्वाब में, ख़याल में, कभी राह में मिले
आओ फिर एक बार कि दिल खोल के मिलें

हर शख्स अजनबी है, शहर भी नया लगे
आए थे हम दुआ को, तेरे दर पे आ गए

मुहब्बत थी, अदावत थी, शिकायत थी, इबादत थी
मसरुफ ज़िन्दगी में मेरे दिन ये चार थे

फ़कत दुआओं का असर होता नहीं
मेरे बीमार-ए-दिल की दवा भी की होती

एक घर बहुत उदास है तन्हा है आज भी
आँखें ठहर गयी हैं किसी इंतजार में