19 जुलाई 2008

प्यासे फूल-प्यासी साँसे


आज कुछ नर्गिस के फूल….
कहीं से आकर-
वहाँ खिलेंगे. जहाँ अक्सर मिलते हैं
केवल
उड़ती हुई धूल के बादल. और जहाँ-
अक्सर मिलती हैं
धूल में लोटती साँसे. लेकिन-
आज कुछ नर्गिस के फूल….
कहीं से आकर-
वहाँ खिलेंगे. केवल
इसी मौसम तक!
क्यों की / अब वहाँ की उड़ती धूल के
बादल –
धूल में लोटती साँसे.
भविष्य हैं. उन नर्गिस के फूलों का
क्यों की / अब उनमे
जिंदगी देने की क्षमता है.
जो कुछ देर पहले तक ख़ुद ही-
साँसों के भिखारी थे.
जो कुछ देर पहले तक ख़ुद ही-
आवाजों के भिखारी थे.
अब.
अब उन फूलों को/ नर्गिस के फूलों को
साँसों की भीख देंगे. अपनी
सूखी हड्डियों से रिसता
खून देंगे. जिसे अब तक उन
नर्गिस के फूलों की जड़ें
चूसती रहीं थी. वहाँ से, जहाँ
वह अक्सर खिला करते हैं

(December 14th 1981)

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