1 अक्तूबर 2008

जिद है….

“आज बारिश हुई है चाँद से शोलों की
मिला दी खाक़ में हस्ती मुझ गम नशीनों की
क्या खूब यह तबस्सुम, यह रिंद, यह क़हर उनका
इस सिन में यह शौक़, यह सितम उनका”

“ज़िद है अश्कों की होठों से जा लिपटने की
कसम होठों ने खाई है ग़म में जलने की
उलझी हुई जुल्फों से क्यों खेल खेले यह हवा
इनकी सोहबत से मुमकिन है मौत आने की”

“तू हुस्न है, तू इश्क है, नहीं कज़ा ऐ दोस्त
छोड़ यह तुंद चलन, ज़ख्म मचल जायेंगे
दिल यह शीशा है, पत्थर नहीं, टूट जायेगा
मैं तो फरजाना हूँ, फरजाना यह बहक जायेगा”

यह शब, यह शबनम न बुझा पायेगी
यह रख्स नहीं वो जो बुझा दी जाए
बुझ-बुझ के जलती है, जल-जल के बुझती है
हो लाख हवादिस, बे-खौफ जला करती है”

1 टिप्पणी:

  1. यह शब, यह शबनम न बुझा पायेगी
    यह रख्स नहीं वो जो बुझा दी जाए
    बुझ-बुझ के जलती है, जल-जल के बुझती है
    हो लाख हवादिस, बे-खौफ जला करती है”
    bahut sunder prstuti hai

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