13 अक्तूबर 2008

मुक़र्रर

“तुमसा हँसीं दुनिया में नहीं और कोई
मुझसा दीवाना नहीं दुनिया में और कोई”

“हर शम्मा थरथराती है ढल जाने के पहले
ज़िन्दगी भी कसमसाती है मौत आने के पहले”

“मुझे किसी और की तमन्ना ना हो सकी
बस! तेरी तमन्ना के सहारे ही यह उम्र गुज़र गयी”

“हसरत-ए-दीदार लिए, बैठा था एक ज़माने से
सिलसिला-ए-उम्र टूटा, एक तेरे आने से”

“क्या ख़ूब तू क़ातिल है, जाने जिगर
देख, तेरे आने से कफन सुर्ख हो चला”

“मेरे आगोश की तमन्ना है, तेरे दिल को ऐ सनम
क्यों जुल्म ढाती हो, दिल-ऐ-मासूम पर”

“मौत से यह कह दो, मुझे खौफ़ नहीं कोई
अब ज़िन्दगी पर ज़िन्दगी का, पहरा लगा दिया”

“इतना हँसीं ख़याल था, तेरे आने का ऐ-सनम
इसी उम्मीद के सहारे, लेते रहे जनम”

“जब से तेरी आंखों से कई जाम पिए हैं
सीने में बस तमन्ना-ऐ-वस्ल लिए हैं”

“इस क़दर ना तोता-चश्म हो यारब
ख़ैर! यह भी तेरी कातिल अदा सही”

“हर अदा में नज़ाक़त है, अंदाज़ में नफासत
नज़रों में शरारत है, तेरी चाल में क़यामत
अदाएं तेरी मुझे वहशी ना बना दें
कब तक मैं सम्भालूँ, इस दिल में शराफत”

“इस दिल की हर धड़कन से भी महबूब हो तुम मुझे
बन्दा तो क्या ख़ुदा से भी अज़ीज़ हो तुम मुझे’

“तेरे क़दमों की क़सम खा कर कहता हूँ मै सनम
कहीं खाक़ में न मिल जाऊं मैं, खुदा की क़सम”

“कोई किसी दर्द की दवा कब तक किया करे
जब दर्द-ए-दवा ख़ुद ही, दर्द में बसा करे”

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