6 अक्तूबर 2008

सभ्यता को आइना

लगी है किसी की –
नुमाइश यहाँ
आइये! देखिये!!
किसी की पाक़ इज्जत के उड़ते
दरख्ते.
लेकिन –
मुस्कुराना यहाँ बिल्कुल मना है.
ठहाके बेखौफ़ लगाइए?
आँसू न बहाइये.
वह तो बहेंगे ही नहीं
केवल कहकहे लगाए??

झपटिये / नोचिए
मगर जरा शराफत के साथ.
लूटिये / खसोटिये
मगर जरा नज़ाकत के साथ.
लेकिन – ठहरिये
जरा दूर ही रहिये
अपने उजले-से (?) दामन पर
दाग न लगवाइये.
देखिया न
कितनी गलीज़ है यह
इसे पकड़ कर काँधों का सहारा
ना दीजिये –
आप देखते नहीं....
कितनी मुंहफट है यह
कहीं सच न बोल दे !
कहीं जलील न कर दे !!
आपके पाक़ दामन पर –
थूंक न दे !!!
होशियारी से / ज़रा दूर से
केवल हँसी ही उडाइये.
क्योंकि –
यही तो आपको आता है.


(13.01.1980)

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