4 अक्तूबर 2008

अधूरा संवाद

आज रात मैं
जागता रहा. सोचता रहा –
कि कल जब तुम मुझसे तन्हाई में/ कभी
मिलोगी. तो मैं तुमसे -
यह कहूँगा .. .. .. वह कहूँगा.

तुम्हारे हाथों को-
कोमल अति-कोमल ही तो?
हाँ, तो तुम्हारे हाथों को,
हाथों में लेकर / अधरों के
सागर तक लाकर
कोमल-सा चुम्बन दूँगा.
जो कहना चाहूँगा नज़रों से
कुछ यूँ ही लब से कह दूँगा….

लेकिन पहले मैं-
जी-भर कर तेरे होठों को...
तेरे मुखड़े को...
तेरे कुंतल को / देखूँगा.
हो सकता है.
नहीं-
यही होगा!!
तेरे लब थर-थराते होंगे
तेरे गालों पर सूरज की सुर्खी छुपकर
शर्माएगी.
धड़कन तेरे सीने की
इस दिल की धड़कन से मिल जायेगी.
और फिर –
मैं तुमसे
यह कहूँगा .. .. .. वह कहूँगा.

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