3 अक्तूबर 2008

पतझड़


मुस्कुराने दो उन पत्तों को
जो अब तक शाखों पर
इतरा रहे हैं / लहरा रहे हैं -
मुस्कुराने दो उन शाखों को
जिन पर अब तक पत्ते
इतरा रहे हैं / लहरा रहे हैं -
हवा के तेज झोकों से उन्हें
अब तक-
मिलता रहा संगीत.
लेकिन अब यही हवायें उन्हें
सिसकी देंगी
उफ़! कितना क्रूर आभास.
लेकिन यह होगा
क्योंकि पतझड़......
अब आ रहा है. पत्ते
अब किसी पैरों तले रौंदे जायेंगे.
चरर-मरर; चरर-मरर
कराहेंगे. हो सकता है-
दीमक उन्हें चर डाले
क्योंकि पतझड़......
अब आ रहा है. पत्ते -
नहीं! नहीं!! .......आह
मेरी आँखे भीग गयी हैं
क्योंकि पतझड़......
अब आ गया है. पतझड़-
आ गया!!!

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