9 अक्तूबर 2008

अर्ज़ है......

"आज फिर रोशन हुआ चराग मेरी महफिल में
जवाब ख़त का आया मुझे ज़िन्दगी देने"

"गुजरी बहार थी कभी दामन के रास्ते
अब तो यहाँ निशान ही बाकी बचे रहे"

"तेरे जज़्बात को हम क्या जानें ?
बनते रहे, बिगड़ते रहे आशियाने"

"तेरे सुर्खरू हयात की लाली जानम,
मेरे प्यार के मय की साकी जानम।
चम्पई रंग में लिपटा तेरा मरमरी शबाब,
किसी शायर के जज़्बात की परस्तिश जानम॥"

"याद है मुझको तेरे खिलवाड़ का मंजर,
नज़रों से मेरी नज़रों के तेरे प्यार का मंजर।
जला कर दिल में इक शम्मा अंधेरों को बुला लेना,
तेरे इकरार करने का हँसी एक ख्वाब का मंजर॥"

"करार तेरा क्यों कर मुझे बे-करार करता है?
तोता-चश्म होकर क्यों नज़र का वार करता है।"

"दिले शिकस्ता से पूछिए संगो-खिश्त का अंदाज़
किस तरह बिखरा क्रिचियों में आइना दिल का । "

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