2 अक्तूबर 2008

बुजदिल है अहबाब…

अंधेरों के झुके हुए साए है साथ-साथ
दूर बहुत झुरमुटों में खो गए हैं अफताब

मायूस हो रहे हैं कई और हमसफ़र
इस तरह चल सकेगा, भला कौन साथ-साथ
न अज़्म है, न शौक़ है, क्या खूब तू बशर
एक बुत है, खामोश है, बुजदिल है अहबाब
दूर बहुत झुरमुटों में खो गए हैं अफताब

मंजिल दिखा-दिखा के मुझे लूटते रहे
लुटता रहा नशे में की लुट रहें हैं साथ-साथ
ये ग़म, ये हवादिस, इन्हीं से जूझते रहे
है शब् भी, शराब भी, मजबूर है शबाब
दूर बहुत झुरमुटों में खो गए हैं अफताब

अंधेरों के झुके हुए साए है साथ-साथ
दूर बहुत झुरमुटों में खो गए हैं अफताब

2 टिप्‍पणियां:

  1. मायूस हो रहे हैं कई और हमसफ़र
    इस तरह चल सकेगा, भला कौन साथ-साथ
    न अज़्म है, न शौक़ है, क्या खूब तू बशर
    एक बुत है, खामोश है, बुजदिल है अहबाब
    दूर बहुत झुरमुटों में खो गए हैं अफताब
    "very beautiful composition and word selection'

    Regards

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  2. संभालें धीरेन्द्र जी मेरा आशीर्वाद !
    रात गयी तो फिर भला किसे रहेगा याद !!

    आप लेखन के साथ साथ पठन भी बढ़ाइये..
    निरन्तरता आवश्यक है..
    शेष जैसा आपको अच्छा लगे..
    साधुवाद..

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