6 नवंबर 2008

ग़ज़ल


तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो
तुम्हे खेल कोई चाहिए, मेरे दिल से आज खेलो

हर हाल में रहा हूँ, ज़िन्दा रहूँगा यूँ ही
यहाँ राख ही रही है, यहाँ राख ही रहेगी
नहीं खौफ़ है क़हर का, शोले मिलें या शबनम
ग़र तुम्हे शराब चाहिए, अश्कों को मेरे पी लो
तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो....

मुझे ग़म नहीं की मैंने, काँटों का साथ माँगा
जब नींद में बशर थे, रातों को मै क्यों जागा
मेरे लहू से रोशन, ये हिज़ाब है सहर का
इस रंग को चुरा कर, होठों को तुम सज़ा लो
तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो....

1 टिप्पणी:

  1. बेनामीनवंबर 13, 2008

    तुम्हे सुर्ख रंग ही चाहिए, मेरे दिल का रंग ले लो/आपने बहुत अच्छी गजल लिखी है/बधाई

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