10 जनवरी 2009

मुझे दर्द दे इतना.....

मुझे दर्द दे इतना की मिटा सकूँ किसी का दर्द
ख़ुद के अश्कों पर हंस सकूँ पोंछ कर ग़मों की गर्द
मुझे दर्द दे इतना......

नहीं साहिल की तमन्ना, नहीं तूफान का ग़म
ख़ुद ही बन कर दर्द-ए-जिगर, बता सकूँ दर्दों का ग़म
होठों को न हंसने की क़सम दे कर मुस्कुरा दूँ?
कितना बड़ा है फरेब, कितना सर्द है दिल
मुझे दर्द दे इतना.....

नहीं तबस्सुम की तमन्ना, नहीं ग़मों का ग़म
लुटा दूँ जान, मिट सके जो किसी का ग़म
दिल की जलन से ऐ 'धीर', अपने अरमानों को जला दूँ?
कितना बड़ा है फरेब, कितना सर्द है दिल
मुझे दर्द दे इतना.....

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