11 अक्टूबर 2008

अर्ज़ किया है......


“दिले पुरखूं से न खेलो अबस
चश्मे मैगूँ से पी है अभी-अभी”

“गिला तेरा नहीं जो तेरी नज़रे बदल गई
है कसूर ज़माने का जो हवा बदल गयी”

“दोशीजा लबों का हुस्न ही जज़्बे-हुस्ने यार है
मसायब हैं मेरी मस्ते-शबाब क़ातिल तेरी अदाएं”

“बुझती हुई शमाँ के मालिक से पूछिए
कितना? कहाँ-कहाँ पे हुआ दर्द रत भर”

“यह क्या? आपकी नज़रें बदल गयीं
अभी ख्वाब में ही आपने इकरार किया था”

“पहले की तुमसे कोई, शिकवा कर सकूँ
अपने लबों से तुम मुझे, ख़ुद ही पुकार लो”

“कुछ और तबस्सुम लबों पर बिखेरिये
फिर मौत से जूझते परवानो को देखिये”

“ऐसा नहीं की हमने, न हँसने की कसम खाई है
मजबूर थे, जब भी हँसे तेरे अश्कों की याद आयी है”

“होने लगी है रात जवाँ चराग़ बुझ चले
आओ जलायें दिल की यहाँ रौशनी तो हो”

“उफ़! यह अदाएं, यह तेरी शोख हँसीं
जला आशियाँ की सरशारियाँ मसायब मेरी”

“कुछ और पिला आ, की मुझे होश है अभी
मुश्किल है क्या, दो जाम उठा की मुझे होश है अभी”

“लो मैं चल दिया जुदा होकर ज़माने से
सकूं मिल जायेगा दिल को, तड़पता था ज़माने से”

“खुदा की कसम तुझे तो मौत भी न पूछेगी
जलायेगी तुझे, आ-आ कर तुझसे रूठेगी”

“मिला दी खाक में हस्ती, तेरा हो साथ अश्कों से
यही इक आह निकली है, मेरे टूटे हुए दिल से”

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया लिखा है।बधाईस्वीकारें।

    “बुझती हुई शमाँ के मालिक से पूछिए
    कितना? कहाँ-कहाँ पे हुआ दर्द रत भर”

    “यह क्या? आपकी नज़रें बदल गयीं
    अभी ख्वाब में ही आपने इकरार किया था”

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  2. “होने लगी है रात जवाँ चराग़ बुझ चले
    आओ जलायें दिल की यहाँ रौशनी तो हो”

    bahut khub hai baya karne ka laheza aapka,
    badi baat bhi keh dali do pankteeyo mein

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